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Tuesday, April 26, 2022

अतृप्त :एक अधूरा आध्यात्मिक सफ़र

  

नमस्कार,
मेरे प्रथम उपन्यास 'ढाई कदम' और 
'एक नदी चार किनारे' को पाठकों के अपार स्नेह मिलने के बाद मैं आपलोगों के समक्ष अपना तीसरा हिंदी पुस्तक  'अतृप्त :एक अधूरा आध्यात्मिक सफ़र ' E-BOOK के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ । उम्मीद है कि यह उपन्यास भी आपका ज्ञानवर्धन  करने के साथ-साथ आपके जीवनशैली को भी प्रभावित कर सुखद जीवन जीने की प्रेरणा देगा।

मैं goodreads.com के पाठकों का विशेष रूप से आभारी हूँ।



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धन्यवाद!

Thursday, April 21, 2022

अलीबाग : क़ाशीद समुद्री तट


एक अपरिचित समुद्री तट

(अलीबाग : क़ाशीद समुद्री तट) 

पूर्वनिर्धारित यात्रा हम सभी करते रहते हैंपरन्तु कभी-कभी पूर्वनिर्धारित यात्रा में मामूली हेर-फेर सामान्य बात है जो अक्सर हमलोगों के साथ घटित होती रहती है। पर अब जिस यात्रा का जिक्र मैं करने जा रहा हूँवह पूर्वनिर्धारित यात्रा में मामूली हेर-फेर जैसी सामान्य बात नहीं है। बात मुंबई यात्रा से जुड़ी हुई है। हमलोगों ने एक यात्रा का प्रारूप बनाया जिसमें मुंबई दर्शन के बाद त्रयम्बकेश्वर महादेवमंदिरशिरडी के साईं मंदिरनासिक (महाराष्ट्रऔर अंत में भीमा शंकर महादेव का दर्शन करना था। हुआ यूँ की हमलोगों ने अपनी यात्रा शुरू की कपूरथला से दिल्ली और दिल्ली से राजधानी ट्रेन में मुंबई के लिए सवार हुए। इसी ट्रेन में एक सज्जन बड़ी इत्मीनान से बैठे खिड़की से बाहरी नज़ारों का आनंद ले रहे थे और हम अपने परिवार के साथ यात्रा से सम्बन्धित बात-चीत कर रहे थे।

जब हमलोग रात्रि भोजन कर सोने चलेतब मैं उन सज्जन के साथ बैठ गया। उनकी बर्थ ऊपर की थी और मेरी नीचे की। वे मुझ से मुखातिब हुए और कहा कि आपकी बातचीत से लगता है की आप सभी मुंबई कई बार आ चुके है और इस बार भी मात्र समुद्र दर्शन हेतु मुंबई का कार्यक्रम बनाया है। जैसा की आप की बातों से लगा की मुंबई में एलीफेंटा गुफ़ा के दौरान फैरी द्वारा समुद्र दर्शन बहुत आनंददायक लगातो मैं आपलोगों को मिनी गोवा कहे जाने वाले अलीबाग के बारे में बताना चाहूँगा और बहुत ही शांत और सुरम्य क़ाशीद समुद्री तट का एक बार दर्शन करने को कहूँगा। मुझे आशा ही नहीं वरन् पूर्ण विश्वास है कि यह यात्रा आपको रोमांचक लगेगी। उनकी बातों के प्रभाव में आकर जब वहाँ की विस्तृत जानकारी ली तो उस यात्रा की कल्पना कर रोमांचित होने लगा और मुंबई स्टेशन पर उतर कर जब अपने होटल में पहुँचा तो अपने रूम पर पहुँचते ही मैंने एलान कर दिया कि कल हमलोग अलीबाग जाने वाले हैं।

बच्चों ने हैरान होते हुए कहा नहीं पापाइस यात्रा में जुहू बीच ही है जो हमलोगों की मन-पसंद जगह है।

तब मैंने मुस्कुराते हुए कहाजुहू से भी बढ़िया जगह पर ले चलूँगा।

बच्चों को विश्वास नहीं हो रहा थापरन्तु उनको मेरी बात मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था क्योंकि वे जानते थे कि पापा ने कह दिया है तो जाना ही पड़ेगा। जब मैंने उन्हें यह बताया की गेट-वे ऑफ़ इण्डिया से फैरी द्वारा अलीबाग जायेंगे तो वे खुश हो गए।

अगले दिन ब्रेकफास्ट कर सुबह गेटवे ऑफ़ इण्डिया पहुँच कर अलीबाग के लिए फैरी का टिकट ली।

अलीबाग जाने के लिए गेटवे ऑफ़ इण्डिया से मांडवा पोर्ट के लिए फैरी चलती है।14 कि.मीलम्बी यात्रा को पूरा करने में एक घंटा लगता है और वहां से बस द्वारा अलीबाग जाना होता है। बस का किराया फैरी के टिकट में शामिल होता है। मुंबई से अलीबाग की सड़क मार्ग से दूरी लगभग 110 कि.मीहै। फैरी डबल डेकर थी। फैरी को देखकर बच्चों ने एक साथ कहावाओऔर हम सभी कतार में लगकर फैरी पर सवार हो गए। समुद्र पर फैरी धीरे-धीरे गेटवे ऑफ़ इण्डिया से दूर होता जा रहा थी। फैरी की छत पर चढ़ कर देखने से लगता था मानो मुंबई एक वृत्त के परिधि पर बसा हो। फैरी के पीछे पक्षियों का झुण्ड उड़ रहा था। 


लड़के
-लड़कियाँ टाइटेनिक फिल्म के यादगार पोज़ को साकार कर रहे थे। एक घंटे के मनोरंजक सफ़र को तय कर हमलोग मांडवा पोर्ट पहुँचे। यात्री जल्दी-जल्दी उतर कर भागे जा रहे थे। हमलोग पहली बार किसी पोर्ट पर उतरे थेअतः सभी गतिविधियों को गौर से देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। कहीं-कहीं फोटोग्राफी भी कर रहे थे। जब हमलोग बाहर पहुँचे तो पोर्ट परिसर में सन्नाटा पसरा था और हमलोगों की आखों के सामने बस सभी सवारियों को लेकर प्रस्थान कर रही थी। ये मंजर देखकर हमलोगों का उत्साह ठण्डा पड़ गया। खैर समस्या हुई की अब काशिद कैसे जाएँ तो समाधान भी वहीँ उपलब्ध था। एक ऑटो वाले ने आकर कहा कि काशिद-बीच यहाँ से 50 कि.मीकी दूरी पर है आप कहें तो मैं चल सकता हूँ और वापस यहाँ समय पर पहुँचा भी दूँगा। हमलोग बिना समय गँवाये ऑटो में सवार हो गए। छोटे-बड़े कसबों से होते हुए हमलोग काशीद-बीच पहुँचे।अलीबाग के पास सबसे लोकप्रिय और आकर्षक समुद्र तटों में से एककाशीद समुद्र तट एक आदर्श और आरामदेह समुद्री तट है। क्रिस्टलीय पानी के साथ सफेदसाफ रेतीला समुद्र तट प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ हैजो पानी के प्रति उत्साही लोगों के लिए एक ड्रीम डेस्टिनेशन है। जब हम वहाँ पहुँचे तो बीच बहुत शांत एवं साफ़ सुथरा था। वहाँ समुद्र में मस्ती करने के अलावा वॉटर स्पोर्ट्स की भी सुविधा थी। हमलोगों ने जम कर मस्ती की और जब समुद्र से बाहर निकले तो अस्थाई स्नान घर में स्नान किया। अब पेट में चूहे कूद रहे थे तो पास में ही वेज़ और नॉन-वेज़ की एक-दो दुकाने थीउन्हीं से काम चलाया। अंत में नारियल पानी पीकर बच्चे फिर से फोटोग्राफी करने लगे। तभी ऑटो ड्राइवर ने आवाज़ लगाईं, "सभी चलो नहीं तो मुंबई के लिए अंतिम फैरी निकल जाएगी। हमलोग भी झटपट ऑटो पर सवार होकर मांडवा पोर्ट पहुँच कर फैरी पर सवार हो गए।




काशिद-बीच से थोड़ी दूरी पर मुरुद जंजीरा बीच है। इस बीच की विशेषता यह है की मुरुद जंजीरा किला अरब सागर के जल से घिरा हुआ है। समयाभाव के कारण हमलोग वहाँ नहीं जा सके।

शाम होने वाली थी। धीरे-धीरे सूर्यास्त होने लगा। फैरी के छत से सूर्य की लालिमा और काले बादल सुन्दर और मनमोहक लग रहे थे। मन्द शीतल हवा के साथ फैरी धीरे-धीरे मुंबई की ओर बढ़ रही थी और चन्द मिनटों में मद्धम रौशनी वाले बिजली के बल्बों की रौशनी समुद्र के चारों तरफ जगमगाने लगी। जैसे ही हमलोग गेट-वे ऑफ़ इण्डिया के पास पहुँचे वहाँ गेट-वे ऑफ़ इण्डिया और ताज़ होटल की विद्युत सज्जा को देख कर उन्हें कैमरों में कैद करने का लोभ कोई सँवरण न कर सका। हम सभी एक अविस्मरणीय यात्रा को सम्पूर्ण कर अपने होटल पहुँचे।




ऐसा नहीं है कि क़ाशीद-बीच के बारे में कोई नहीं जानता। वहां बीच पर इक्के-दुक्के सैलानी भी थेपरन्तु मुझे ऐसा लग रहा था कि इस बीच की खोज मैंने की है और इस उम्मीद से इस यात्रा-वृतान्त को लिखा है कि आप भी एक बार वहाँ जरूर जायें। उम्मीद ही नहीं वरन् पूर्ण विश्वास है कि यह पर्यटन स्थल आपको निराश नहीं करेंगे। अलीबाग के पास अन्य आकर्षक समुद्री तट हैं नगांव बीचकिहिम बीचमुरुद जंजीरा बीच आदि ।


©  राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'

Monday, April 11, 2022

कस्तूरबा गाँधी


कस्तूरबा गाँधी -जन्म 11 April 1869
(रचनात्मक परिवर्तनों की नेता और पोषणकर्ता)

कस्तूरबा थी नारी एक महान,
उन्होंने बनाई अपनी पहचान,
साज-श्रृंगार को छोड़ा था उसने,
अपने जीवन के उद्देश्य को जान। 
पहले थी वह एक नारी निरक्षर,
लगन और मेहनत से बनी साक्षर 
आजादी की पहली अलख जगी तब,  
नारी आवाज की बनी हस्ताक्षर। 
गाँधी जी ने जो देखे थे सपने,
बा ने उसको बना लिए थे अपने,
गाँधी जी को पग-पग साथ दिया था,
लगीं स्वतंत्रता की माला जपने। 
खुद को बदलना, ना होता आसान,
बा बदली, परिस्थितियों को पहचान,
जीवन बदली, रंग-ढ़ंग भी  बदला,
तब मोहनदास गाँधी बने महान। 
©  राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'

Friday, April 9, 2021

आत्मीयता




आत्मीयता


मेरे एक परम मित्र अशोक जी का तबादला मेरे शहर में हो गया। एक दिन मैं सपरिवार बिना उनको सूचना दिए, उनका कुशलक्षेम पूछने उनके निवास स्थान पर पहुँचा। अभी हमलोग उनके घर के प्रवेशद्वार पर खड़े ही हुए थे कि एक काली आवारा कुत्तिया जोर-जोर से हमलोगों के ऊपर भौंकने लगी। मेरी पत्नी और बेटी उसके भौंकने की आवाज को सुनकर डर के मारे मुझ से चिपक गए। मैं भी डर के मारे 'हट-हट' कह रहा था, परन्तु उसने भौंकना कम नहीं किया। तभी कुत्तिया के भौंकने की आवाज को सुनकर अशोक दम्पत्तिबाहर निकले और हमलोगों को देखकर उन्होंने कुत्तिया को डाँटते हुए कहा, "जूली नहीं, जूली नहीं। "इतना सुनते ही जूली शांत होकर अपनी दुम हिलाते हुए अशोक के पास चली गई। अशोक उस कुत्तिया को प्यार से पुचकारते हुए उसे सहलाने लगा और हमलोगों को इशारे से अंदर आने को कहा। हमलोग सहमते हुए उसके घर में घुसे और पीछे-पीछे अशोक दम्पत्ति ने घुसते हुए कहा , "यार राकेश! तुमने यहाँ अपने आने की सूचना भी नहीं दी। चलो तुमलोग अचानक आए तो और अच्छा लगा। हमलोग भी सोच रहे थे कि घर व्यवस्थित हो जाए तो तुमसे मिलने जाएँगे।"

मैंने हँसते हुए कहा, "तुमसे पहले तो तुम्हारी जूली से मुलाक़ात के कारण हम सभी की साँसें अभी तक गले में अटकी पड़ी है। "

इतना सुनते ही अशोक की पत्नी पानी लेने रसोई की तरफ गई तब अशोक ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "सच पूछो तो राकेश, शुरू-शुरू में हमलोग भी इस जूली से परेशान थे। हमलोगों के पड़ोस में वर्मा जी के यहाँ जूली पड़ी रहती है। वर्मा जी सुबह और रात को इसे नियमित रूप से रोटी खिलाते हैं और यह दिनभर आवारा की तरह घूमती है और रात को इस गली की रखवाली करती है। एक-दो दिन जूली के भौंकने पर वर्मा जी ने इसे डाँट लगाई, उसके बाद हमलोगों को शान्ति मिली।"

अशोक की पत्नी पानी लेकर आई और हमलोग का मन पानी पीकर शांत हुआ। अन्य औपचारिक बातें करते-करते शाम हो गई। नाश्ता कर अशोक दम्पत्ति से हमने विदा ली। हमलोगों को छोड़ने अशोक दम्पत्ति के साथ-साथ जूली भी मुख्य सड़क तक आई और हमलोग अपने घर पहुँचे। इसके बाद एक-दूसरे के यहाँ आना-जाना लगा रहा और जूली उस दिन के बाद हमलोगों पर कभी नहीं भौंकती, परन्तु कुत्तों का भय अभी भी हमलोगों के दिलों-दिमाग में रहता है। 

किसी कारणवश मुझे भी अपने किराए के मकान को छोड़ना पड़ा और अशोक की मदद से उसकी गली के दूसरे छोर पर एक किराए का मकान मिल गया। एक रात पुराने मकान से नए मकान में सामान रख कर वापस लौट रहा था तभी गली के तीन-चार कुत्ते मुझ पर झपट पड़े। उनके सामूहिक हमले से मैं घबरा गया। मैं जितना जोर से 'हट-हट' की आवाज करता, कुत्ते उससे ज्यादा तेज आवाज में भौंकते। इसी क्रम में कुत्ते इतने पास आ गए कि मैं अपना संतुलन खो कर गिरने ही वाला था, तभी जूली तेजी से दौड़ते हुए उन कुत्तों पर भौंकने लगी। उसके भौंकने से सभी कुत्ते भाग गए। जूली अपनी दुम को तेजी से हिलाते हुए मेरे सामने खड़ी हो गई। मेरी जान में जान आई और मन ही मन जूली का आभार प्रकट कर अपने गंतव्य की तरफ बढ़ गया।
 
एक दिन वर्मा जी का भी तबादला किसी अन्य शहर में हो गया। सामान को ट्रक पर चढ़ते देख जूली को कुछ समझ नहीं आया। वर्मा जी चले गए और जूली उनकी राह उनके दरवाजे पर ताकती रहती। कुछ दिनों तक बावली की तरह गलियों में चक्कर लगाती रही और अंत में वह समझ गई की मेरे मालिक अब नहीं लौटेंगे। उस गली के सभी मकानों के दरवाजे पर बारी-बारी से रहने गई परन्तु किसी ने उसे आश्रय नहीं दिया। समय पर खाना नहीं मिलने से दिन पर दिन कमजोर होती गई। अब उस गली पर अन्य आवारा कुत्तों ने कब्ज़ा जमा लिया। एक रात मेरे घर के पास बहुत से कुत्तों के  भौंकने की आवाज को सुन कर मैं बाहर निकला तो देखा कि जूली पर बहुत सारे कुत्ते झपट्टा मार-मार कर उसे घायल कर रहे थे। मैंने पास पड़े एक डंडे को उठाकर जोर से 'हट-हट' का आवाज लगाई । मेरी आवाज सुनकर सभी कुत्ते भाग गए और जूली भागते हुए मेरे पास आकर अपनी दुम जोर-जोर से हिलाने लगी। न चाहते हुए भी मैंने उसकी पीठ को सहलाया तो वह आराम से वहीं बैठ गई। मैं अंदर गया और उसके लिए रोटी और दूध लेकर आया। वह दूध और रोटी को ऐसे खा रही थी मानों वह कई दिनों से भूखी हो। उसके खाना खा लेने के बाद हमदोनों एक-दूसरे को आत्मीयता की दृष्टि से देख रहे थे।
-©  राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'

Wednesday, March 10, 2021

एक नदी चार किनारे

 

नमस्कार,
मेरे प्रथम उपन्यास 'ढाई कदम' को पाठकों के अपार स्नेह मिलने के बाद मैं आपलोगों के समक्ष अपना दूसरा हिंदी उपन्यास 'एक नदी चार किनारे' प्रस्तुत कर रहा हूँ । उम्मीद है कि यह उपन्यास भी आपका मनोरंजन करने के साथ-साथ आपके जीवनशैली को भी प्रभावित कर सुखद वैवाहिक जीवन जीने की प्रेरणा देगा।
मैं goodreads.com के पाठकों का विशेष रूप से आभारी हूँ।



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धन्यवाद!