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Wednesday, February 29, 2012

सास पुराण





पाठको ! सास का ख्‍याल आते ही मैं कॉंपने लगता था, मेरी सॉंसें उखड़ने लगती थीं । हालाँकि, मैं अपनी पत्‍नी से डरता नहीं हूँ, फिर भी आप से अनुरोध है कि कृपया इस रचना को मेरी पत्‍नी को पढ़ने के लिए नहीं दीजिएगा, क्‍योंकि, इस रचना को अगर मेरी पत्‍नी ने पढ़ लिया तो वह मेरी ऐसी हालत कर देगी कि मैं आपके लिए दूसरी रचना पेश करुँ, ऐसी स्थिति नहीं रहेगी । तो आइए, मैं बजरंग बली का नाम लेकर आपको यह बताऊँ कि मैं अपनी सास का बलि का बकरा कैसे बना?       
यह मेरा दुर्भाग्‍य है कि मेरे कुँआरे जीवन की कोई भी रात ऐसी नहीं बीती जिसमें एक भयानक चेहरा मेरे सपनों में न आया हो और वह भयानक चेहरा किसका हो सकता है यह आप अनुमान लगा लें । वैसे मैं बजरंग बली का भक्‍त हूँ और भूतप्रेत से डरता नहीं हूँ ।

यह बात उन दिनों की है जब मैं कुँआरा था और मेरी नई-नई नौकरी भी लगी थी । मेरे मित्र जो शादीशुदा थे वे अक्‍सर मेरे यहॉं बैठ कर गप्‍पें मारते और अपनी अपनी सास पुरान सुनाते । मित्रों की बातें सुन कर मेरी आत्‍मा कॉंप उठती । कुँआरे जीवन में जो काल्‍पनिक रंगीन स्‍वप्‍नों वाली राते होनी चाहिए थीं वे इन मित्रों की वजह से भयानक स्‍वप्‍नों वाली रातों में बदलने लगी । रामसे प्रोडक्‍सशन फिल्‍म की तरह मेरे सपने भी भयानक हो गए । सपने की प्रथम दो रीलों में प्रेमिका के साथ छेड़छाड़, फिर शादी और शादी के बाद सास से मुलाकात । पहले तो मेरी सास सौम्‍य लगती परन्‍तु हॉरर फिल्‍म की तरह कुछ ही देर में उनके चेहरे पर दो दॉंत उग आते, उनका चेहरा कुरुप हो जाता और वे मुझे तरह-तरह की यातनाएं देती । यह यातना भरी स्‍वप्‍न पंद्रह रील चलती । आप समझ सकते हैं कि मेरी रातें फिर कैसे घुटन भरी हो गई । इस स्‍वप्‍न से छुटकारा पाने की मैंने बहुत कोशिश की मगर कामयाब न हो सका । आप यकीन नहीं करेंगे कि मेरी उम्र चौबीस साल से तीस साल की हो गई मगर यह स्‍वप्‍न बिना नागा किए प्रत्‍येक रात आता और जब चीख मार मैं सुबह उठता तो पसीने से अपने आप को तर पाता । शुरु-शुरु में पड़ोसी दौड़ पड़ते और मुझे तरह तरह सांत्‍वना देते । मगर मेरी चीख बाद में उन लोगों के लिए मुर्गे की बॉंग की तरह हो गई । अब मेरे पड़ोस में अलार्म घड़ी लगा कर कोई सोता, अब वे लोग मेरी चीख सुन कर उठते ।

जिसकी कल्‍पना मात्र से ही इतना डर लगता हो वह हकीकत में कितनी मुश्किल करेगी, यह सोचकर मैंने फसला कर लिया कि अब मैं शादी नहीं करुँगा । मगर हाय रे समाज ! वह कब किसी को चैन से मरने देता है । सभी मुझे सलाह देने लगे । शादी कर लो, अब नहीं करोगे तो कब करोगे । जब किसी पार्टी में जात तो सभी मित्र सपत्‍नीक होते, तो उनके लिए मैं ही आकर्षण का केंद्र होता । वह मुझे ऐसे घूरते मानो वे किसी पार्टी में नहीं वरन् किसी चिडि़याघर में मुझ जैसे निराले अविवाहित लाचार प्राणी को देखने आए हों । अपने मित्रों को अपनी-अपपनी पत्‍नी के साथ मुस्‍कराते देख मेरे दिल में कोमल भावनाओं का प्रबल आवेश आया और मैंने शादी करने का फैसला कर लिया । मगर अब शादी का एक राज़ पता चलता है कि पति-पत्‍नी के साथ खास कर पार्टियों में पति क्‍यों मुस्‍कराता रहता है, क्‍योंकि मेरी पत्‍नी किसी भी पार्टी में जाने से पहले, एक हिदायत मुझे अवश्‍य देती है देखो जी, पार्टी में मुँह लटका कर मत बैठना । खैर, तो मैंने शादी के लिए लड़की तलाशना शरु कर दिया । मगर सास का खौफ अभी भी मेरे दिलो-दिमाग में छाया हुआ था । अत: मैंने फैसला किया कि लड़की चाहे कैसी भी हो चलेगा लेकिन उसकी मॉं नहीं होनी चाहिए अर्थात् ऐसी लड़की जिसके पिता विधुरर हों । बहुत खोजबीन की परन्‍तु ऐसा कोई पुरुष न मिला हो शातिपूर्वक बिना पत्‍नी के जीवन बिता रहा हो । अलबत्‍ता ऐसी कितनी ही औरतें मिली जो बिना पति के मजे से जिंदगी बसरा कर रही थी । तब मुझे पता चला कि ससुर बिना सास का मिलना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव सा है । इधर मित्रों की पत्नियॉं मुझ पर दबाव डालने लगी कि ये क्‍या शर्त हुई, और अंत में मुझे नारी दबाव के आगे झुकना पड़ा एवं उन्‍हीं लोंगों की पसंद से मेरी शादी मेरी श्रीमती जी से हो गई । दुर्भाग्‍य से या सौभाग्‍य से कह लीजिए कि मेरी पत्‍नी की एक मात्र संबंधी उनकी मॉं ही थीं । सुनकर थोड़ा सुकून मिला कि यलो साला, साली एवं ससुर से तो छुट्टी मिली । तो साहब! धड़कते दिल से शादी के लिए घोड़ी पर बैठा और अपनी भावी सास की कल्‍पना करता रहा । फरवरी का महीना और मैं पसीने से लथपथ । सभी दोस्‍त नाच करते हुए लड़की वालों के दरवाजे पर पहँचे । पहुँचते ही मेरी सास से परिचय करावाया गया । लगा स्‍वप्‍न हकीकत बन गई, वही चेहरा । मैंने मन ही मन कहा भगवान्! अब तुम ही बचाना ।

जब विदाई की घड़ी आई तो मेरी सासु जी ने कहा बेटा जब भी तुम्‍हें मेरी जरूरत हो तो पत्र लिख देना, मैं आ जाऊँगी । मैंने मन ही मन में कहा वाह री बुढि़या । मुझे चारा डाल रही है , पर मैं कच्‍चा खिलाड़ी नहीं था । मैंने भी कहा क्‍यों नहीं मॉं जी, जरुर खत लिखूँगा । मेरी तो इच्‍छा थी कि आप भी मेरे साथ चलती लेकिन क्‍या करुँ, जहॉं मैं रहता हूँ वा मकान, एक कमरे का ही सेट है । अत: आपको बुला नहीं सकता । जैसे ही बड़े मकान की व्‍यवस्‍था हो जाएगी वैसे ही आपको बुला लूँगा । यह सुन कर उसका चेहरा थोड़ा लटक सा गया, परन्‍तु थोड़ा संभलते हुए बोली कोई बात नहीं बेटा । मुझे बुढि़या को यात्रा करने में भी बहुत तकलीफ होती है । किसी तरह से हमेशा के लिए बला टली । मैं अपनी पत्‍नी के साथ मधुर जीवन व्‍यतीत करने लगा । इसी बीच मुझे पुत्री रत्‍न की प्राप्ति भी हुई । सास ने पत्र के द्वारा अपने आने की मंशा जाहिर की ताकि नातिन का मुंह देख सके लेकिन मैंने तुरन्‍त सूचना भेज दी कि जब भी फुर्सत मिलेगी हम लोग मिलने जरुर आऍंगे ।

एक दिन मैं अपने पूर परिवार के साथ स्‍कूटर से बाजार जा रहा था कि रास्‍ते में मेरे स्‍कूटर की टक्‍कर सामने से आ रही कार से हो गई । सपरिवार हम लोग अस्‍पताल कब पहुँच गए पता ही नहीं चला । जब होश आया तो अपनी सास को अपने सामने बैठा पाया । शादी के बाद दूसरी बार अपनी सास को देख रहा था । परन्‍तु आज सासू मॉं कल्‍पना वाली नहीं थी, उनके चहने पर ममता से आत-प्रोत भाव थे । मेरी ऑंखें उनसे मिलते ही, वे फफक कर रो पड़ी और ममता भरा एक ही शब्‍द उनके मुँह से निकला- बेटा और मेरे सीने पर सर रखकर सुबकने लगी । मैं भी अपने ऑंसुओं को रोक न सका । उस स्‍नेहमयी सास की हकीकत से वाकिफ होने लगा, मन उस ममता भरी आवाज बेटा के स्‍वर लहरी में हिलोरों लेने लगा ।

हम लोग अस्‍पताल से अपने एक कमरे के सेट वाले मकान में आ गए । मेरी पत्‍नी को एक महीने का बेड रेस्‍ट था । एक महीना मेरी सास हम लोगों के साथ रहीं । उन्‍होंने हम लोगों को मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक सभी तरह से मदद की । जब मैं ऑफिस जाने लायक हुआ तो उन्‍होंने अपने घर जाने की तैयारी कर ली । मैंने उन्‍हें बहुत रोकने की कोशिश की मगर उन्‍होंने मुस्‍कराते हुए कहा बेटा, यहॉं तुम्‍हारे पास मात्र एक ही कमरा है । यह सुन कर मैं पानी-पानी हो गया ।

खैर! मेरी सासू मॉं की मधुर याद हमेशा ही आती है । पाठकों ! अब समस्‍या यह है कि स्‍वप्‍न में सास से छुटकारा पा तो लिया परन्‍तु उनकी उत्‍तराधिकारी अर्थात् मेरी पत्‍नी ने मेरे स्‍वप्‍नों में प्रवेश कर लिया । अब मेरे सपने में मेरी पत्‍नी का चेहरा ही भयानक लगता है । पहले चीखें मार कर उठ जाता था परंतु अब चीख हलक के अंदर ही रह जाती है । मैं बिस्‍तर पर छटपटाता रहता हूँ । ऑंखें तभी खुलती हैं जब मेरी धर्मपत्‍नी साक्षात् दुर्गा का रूप लिए हाथ में झाडू लेकर झकझोर कर बोलती है क्‍या बंदरों की तरह बिस्‍तर पर पलटी मार रहे हो?
तो पाठको! अपने पढ़ा कि किस तरह एक निर्मूल समस्‍या को लेकर मैं परेशान था मगर जो वास्‍तविक समस्‍या थी उसे प्रेम, प्‍यार, विश्‍वास और पता नहीं, मन में क्‍या-क्‍या सोच रहा था । मौका मिला तो मैं अपनी पत्‍नी पुराण, जो हकीकत है, उसको बयान करुँगा । आज्ञा दें ।