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Thursday, October 30, 2014

दूरियाँ

              

    

          








    

               दूरियाँ

फासले हमने जो बनाएआओ इसे दूर करें

दूरियाँ कम होइसके लिएकोई जतन तो करें। 


दो क़दम तुम जो बढ़ो दौड़ करहम गले से लगें

फासले हमने जो बनाएआओ इसे दूर करें।


तेरे स्वाभिमान कोचोटपहुँचाया था कभी

कभी मिलो तोइस बात काइकरार करें।


झूठे अहंकार में आकरतुझे सताया था कभी

पुरानी भूलों काएहसास अबबेचैन करे


सभी गुनाहों का हिसाब न दे पाउँगा मैं

मेरा ज़मीर ही, मुझको हर घड़ी शर्मसार करे.


तुम मुझे किसी दिन माफ करोगी, ऐसा लगता तो नहीं

मेरा दिल फिर भी, उस दिन का इंतज़ार करे। 


आज मिल गई हो, बहुत फासले हैं मगर

मैं गुनाहगार हूँ तेरा, तुम मुझे अब माफ करो। 



जब तुम ने कर लिया क़ुबूल, अपने गुनाहों को

फिर हम दोनों क्यों, वक्त यूँ बरबाद करें। 


पुराने ज़ख्मों को न कुरेदो "राही"

आओ नए सिरे से, ज़िंदगी की शुरुआत करें।


© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Saturday, October 4, 2014

गुरु वंदना

               










                          गुरु वंदना



उनकी नज़रें इनायत की, जरूरत है मुझे

बिगड़ा हुआ हूँ, सुधरने की, जरुरत है मुझे।


उनकी सोहबत का असर, कुछ हुआ इस कदर

नेक राह पर चलूँ ये, ख्याल आया है मुझे।


देने को बहुत कुछ था, दिया भी बहुत कुछ

झोली ही अपनी तंग थी, अब समझ आया है मुझे।


नूर था उनके चेहरे पर, की नज़र हटती थी नहीं

बंदगी का ख्याल कभी, आया नहीं मुझे।


प्यार इतना दिया मुझको, जिसके लायक न था मैं

मैं अधम था फिर भी गले से, लगाया था मुझे।


जीवन के हरेक मोड़ पर, उनका सहारा मिल गया

कठिन से कठिन हाल से, उबारा है मुझे।


उनके रहमों करम को, कौन जानता नहीं

उनके रहमों करम से, सबकुछ मिला है मुझे।


आज वो नहीं हैं ये, मैं मानता ही नहीं

आज भी वो ही रास्ता, दिखाते हैं मुझे।


अगर वो न होते तो, मुझे जानता ही कौन

उनके ही बदौलत, आप सब जानते है मुझे।


© राकेश कुमार श्रीवास्तव