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Sunday, April 2, 2017

विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस


राकेश कुमार श्रीवास्तव
ऑटिज़्म पीड़ितों  के प्रति हमारी भी ज़िम्मेदारी है

विश्व ऑटिज्म (स्वलीनता) जागरूकता दिवस: 2017 का  प्रसंग : "स्वायत्तता और आत्मनिर्णय की ओर"


¨ इस विषय को 18 दिसंबर 2007 में संयुक्त राष्ट्र के महासभा द्वारा  पारित किया गया।
¨ संयुक्त  राष्ट्र के महासभा  द्वारा विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस के बारे में जागरूकता
प्रसारित करने के लिए प्रतिवर्ष 2 अप्रैल को मनाया जाता है। 
¨ यह 2008  से शुरू हुआ और हर साल मनाया जाता है।
¨ भारत में 1 करोड़ 80 लाख  लोग इस रोग से ग्रसित हैं।
¨ प्रति 68 पर 1 व्यक्ति इस रोग से ग्रसित पाए जाते हैं।                                 
¨ विकलांगता प्रमाण पत्र दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल से बनवाया जा सकता है।


संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के अनुमान के अनुसार ऑटिज्म से पीड़ित अस्सी प्रतिशत से अधिक व्यक्ति बेरोजगार है। ऑटिज्म मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला रोग है जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है। हिन्दी में इसे 'आत्मविमोह', ‘स्वलीनता’ और 'स्वपरायणता' भी कहते हैं। ऑटिज़्म पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता है  लेकिन इससे पीड़ित व्यक्ति को सीखा कर उसका जीवन सुगम बनाया जा सकता है
1980 तक ऑटिज़्म, जानकारी उपलब्ध नहीं होने के कारण भारत में अनसुना सा था एवं भारत में ऑटिज़्म का निदान दुर्लभ ही था । अब जैसे-जैसे जागरुक्ता बढ़ रही है वैसे-वैसे इस रोग से पीड़ित बच्चों की पहचान हो रही है । छोटी उम्र से ही उनके माता-पिता उनकी विशेष ख्याल रखते है और समाज में इस रोग के प्रति  जागरूकता के कारण बच्चों को एक रोगी समझते है ना की पागल . ऑटिज्म से पीड़ित होने वाले प्रमुख कारणों की जानकारी अभी प्राप्त नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यह रोग आनुवंशिक या पर्यावरणीय कारकों के साथ जुड़ा हो सकता है।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में दूसरों से बातचीत न कर पाने अथवा बाहरी दुनिया से अनजान अपनी ही दुनिया में खोए रहने की समस्या पायी जाती है। उनका व्यवहार भी असमान्य होते हैं। ये बच्चे आसानी से नाराज़ हो जाते हैं, तथा इन्हें स्कूल में सीखने-समझने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है, लेकिन यह सुखद समाचार है कि ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति बहुत बारीकी से हर जानकारी पर ध्यान देता है तथा ऐसे बच्चे कुछ गतिविधियों में दूसरों की तुलना में बेहतर होते है। तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चे में इस रोग के लक्षण दिखने लगते हैं ।
इससे प्रभावित बच्चा या व्यक्ति :
सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना,
निरर्थक प्रतिक्रिया करता है, जैसे हाथ हिलाना, सिर घुमाना या शरीर को झकझोरना आदि,
किसी से नज़र मिलाने से कतराता हैं,
आवाजों पर ध्यान नही देता तथा कभी-कभी बधिर प्रतीत होता है,
बच्चे बोलने से कुछ समय बाद अचानक ही बोलना बंद कर देता है, तथा अजीब आवाजें निकालता है,
किसी के भी आने या जाने से परेशान नही होता,
किसी भी प्रकार के शारीरिक तकलीफ के प्रति कोई क्रिया नहीं करता ना ही उससे बचने की कोशिश करता है, कोशिश करने पर भी किसी से बात नहीं करता है। वो अपनी ही किसी दुनिया में खोया रहता है, एक ही वस्तु या कार्य में उलझा रहता है,
अन्य बच्चो की तरह काल्पनिक खेल नहीं खेल पाता, वह खेलने की बजाए खिलौनों को सूंघते या चाटतें हैं,
ये बदलाव को बर्दाशत नहीं कर पाते व अपने क्रियाकलापों को नियमानुसार ही करना चाहतें है,
ये या तो बहुत चंचल या बहुत सुस्त रहते हैं,
इन बच्चो में अधिकतर कुछ विशेष बातें होती हैं जैसे किसी एक इन्द्री (जैसे, श्रवण शक्ति) अति तीव्र होना। इस रोग से प्रभावित 30 % बच्चे स्वयं को चोट पहँचा सकते हैं।
ऑटिज़्म को शीघ्र पहचानना और मनोरोग विशेषज्ञ से तुरंत परामर्श ही इसका सबसे पहला इलाज है। ऑटिज़्म के लक्ष्ण दिखने पर मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, या प्रशिक्षित स्पेशल एजुकेटर (विशेष अध्यापक) से सम्पर्क करें। ऑटिज़्म एक आजीवन रहने वाली अवस्था है जिसके पूर्ण उपचार के लिए कोई दवा की खोज ज़ारी है, अतः इसके इलाज के लिए यहाँ-वहाँ न भटकें व बिना समय गवाएं इसके बारे में जानकारी प्राप्त करें।
ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे को निम्नलिखित तरीकों से मदद दी जा सकती है ।
इन्द्रियों की अति-तीव्रता को कम करने के लिए : -
शरीर पर दबाव बनाने के लिए बड़ी गेंद का इस्तेमाल करें,
सुनने की अतिशक्ति को कम करने के लिए कान पर थोड़ी देर के लिए हल्की मालिश करें ।
खेल व्यवहार के लिए : -
खेल-खेल में नए शब्दों का प्रयोग करें,
खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका दिखाएँ,
बारी-बारी से खेलने की आदत डालें,
धीरे-धीरे खेल में लोगो की संख्या को बढ़ते जायें।
बोल-चाल के लिए : -
छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें,
साधारण भाषा का प्रयोग करें,
रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्दो को जोड़ कर बोलना सिखांए,
पहले समझना तथा फिर बोलना सिखांए,
यदि बच्चा बोल पा रहा है तो उसे शाबाशी दें तथा बार-बार बोलने के लिए प्रेरित करें,
बच्चे को अपनी जरूरतों पर बोलने का मौका दें,
यदि बच्चा बिल्कुल बोल नही पाए तो उसे तस्वीर की तरफ़ इशारा करके अपनी जरूरतों के बारे में बोलना सिखाएं।
मेल-जोल के लिए : -
बच्चे को घर के अलावा अन्य लोगों से नियमित रूप से मिलने का मौका दें,
बच्चे को तनाव मुक्त स्थानों जैसे पार्क आदि में ले कर जायें,
अन्य लोगों को बच्चे से बात करने के लिए प्रेरित करें,
बच्चे के साथ धीरे-धीरे कम समय से बढ़ाते हुए अधिक समय के लिए नज़र मिला कर बात करने की कोशिश करे,
तथा उसके किसी भी प्रयत्न को प्रोत्साहित करना न भूलें।
व्यवहारिक परेशानियों के लिए : -
यदि बच्चा कोई एक व्यवहार बार-बार करता है तो उसे रोकने के लिए उसे कुछ ऐसी गतिविधियों में लगाएं जो उसे व्यस्त रखें ताकि वे व्यवहार दोहरा न सके,
गलत व्यवहार दोहराने पर बच्चे को कुछ ऐसा काम करवांए जो उसे पसंद नहीं है,
यदि बच्चा कुछ देर गलत व्यवहार न करे तो उसे तुरंत प्रोत्साहित करें,
प्रोत्साहन के लिए रंग-बिरंगी, चमकीली तथा ध्यान खीचनें वाली चीजों का इस्तेमाल करें ।
गुस्सा या अधिक चंचलता के लिए : -
बच्चे को अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए सही मार्ग दिखाएँ जैसे की उसे तेज व्यायाम, दौड़, तथा बाहरी खेलों में लगाएं, यदि परेशानी अधिक हो तो मनोचिकित्सक के द्वारा दी गई दवा का उपयोग भी किया जा सकता है।


संदर्भ स्रोत :


- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
                 



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