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पुस्तक समीक्षा

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1. “ज़िन्दा है मन्टो”


केदारनाथ ‘शब्द मसीह’ एवं के.बी.एस. प्रकाशन, दिल्ली की पुस्तक “ज़िन्दा है मन्टो” एक लघु-कथा संग्रह है। मन्टो का नाम ज़ेहन में आते ही एक बेबाक अफसानानिगार की छवि उभरती है और इस पुस्तक में लिखी सभी लघु-कथाओं को पढ़ते हुए शब्द मसीहा जी को पाठक, मन्टो के सांचे में ढलते हुए महसूस करते हैं। इसको कहने में मुझे कोई अतिश्योक्ति नहीं लगती कि शब्द मसीहा जी ने मन्टो की विचार-धारा को आगे बढ़ाने का काम इस पुस्तक के माध्यम से किया है।

इस पुस्तक के शीर्षक की सार्थकता इसकी कथाओं को पढ़कर सहज ही महसूस की जा सकती हैं। तथाकथित बोल्ड विषय पर लिखना कहाँ आसान होता है परन्तु शब्द मसीहा जी ने फूहड़ता से परहेज करते हुए इस विषय पर अपनी लेखनी से एक अलग ही छाप छोड़ी जो कहीं न कहीं पात्रों के मनोभाव को पाठक अपने अंतर्मन से महसूस करता है। बात जब बोल्ड विषयों पर लिखने की हो तो फूहड़ता का आरोप लगता रहा है और इससे मन्टो भी बच नहीं पाए थे परन्तु शब्द मसीहा जी ने अपने पात्रों की पीड़ा को संतुलित शब्दों का ज़ामा सभी कथाओं में पहनाया है।

इस लघु-कथा संग्रह में कुल 104 कथाएं हैं जो बिना रुके आपके चेहरे पर भिन्न-भिन्न भाव-भंगिमा उकेरने में सक्षम है और सभी कथाओं को पढ़ने के बाद भी कथाओं के पात्र बार-बार आपको फिर से इस पुस्तक को पढ़ने के लिए मजबूर करते हैं।
16 शब्दों की कथा अगर आपके ज़ेहन में सदा घूमती रहे तो ये कमाल करने का माद्दा शब्द मसीहां जी की लेखनी में है। इनकी कथा “सच” को पढ़ कर इस कमाल को महसूस कर सकते हैं।

केदारनाथ जी की दो काव्य संग्रह पूर्व में प्रकाशित हो चुके है और ‘ज़िन्दा है मन्टो’ इनका पहला कहानी संग्रह है जिसको पाठकों का भरपूर प्यार मिल रहा है।
नई पीढ़ी को अपनी लेखनी से मन्टो को परिचय कराने के लिए शब्द मसीहा जी को साधुवाद है।


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