मेम्बर बने :-

Thursday, December 1, 2016

वाक्यांश- बख्शीश

वाक्यांश- बख्शीश

रामाकांत दसवीं पास कर सेठ हजारीलाल के यहाँ घर के छोटे-मोटे काम पर लग गया। जब वह 18 साल का हुआ तो सेठ जी ने उसको कार चलाने का लाइसेंस दिलाकर अपना कार चलाने का कार्य उसे दे दिया और उसकी तनख्वाह दो हज़ार से बढ़ा कर पांच हज़ार कर दिया। रामाकांत को एडवांस में पांच हज़ार की तनख्वाह प्रत्येक महीने मिल जाते थे। रामाकांत की ज़िन्दगी लगभग चार साल तो बड़े मज़े में चली, परन्तु उसकी शादी होने के बाद पांच हज़ार की रक़म कम पड़ने लगी। उसने सेठ जी से अपनी तनख्वाह बढ़ाने की बात की तो सेठ ने खुश होकर उसकी तनख्वाह छः हज़ार कर दी। रामाकांत ने कुछ कहना चाहा तो सेठ ने हँसते हुए रामाकांत को लालच ना करने की नसीहत दे डाली। एक दिन रामाकांत की नज़र अखबार की एक विज्ञापन पर पड़ी। जिसमें किसी कारखाने में दसवीं पास कार चालक की आवश्यकता और वेतन दस हज़ार का जिक्र था। रामाकांत के दसवीं पास का सर्टिफिकेट एवं कार चलाने की कौशल को देख कर कारखाने के मैनेजर ने उसे नौकरी दे दी और अगले महीने की पहली तारीख़ से काम पर आने को कहा। रामाकांत ने एडवांस में एक महीने की वेतन के लिए मैनेजर से बात की तो उसने नए कर्मचारी को एडवांस देने से स्पष्ट मना कर दिया। रामाकांत ने सोचा कि अगर मैंने यहाँ नौकरी की तो अगले महीने का खर्च कैसे चलेगा? क्योंकि सेठ जी के दिए हुए रूपए से तो एक महीना खर्च नहीं चलता उसपर दुकानदारों की उधारी पहले से ही सर पर है। रात भर इसी चिंता में रामाकांत ने करवट बदलते हुए बिता दी। 

                         सुबह सेठ जी ने उसे बुला कर कहा- रामाकांत, मेरे ख़ास मेहमान इंजीनियर साहब को शादी में जाना है। मेरी कार को बढ़िया ढंग से साफ़ कर के उनके पास जाओ और हाँ देखो ! उनको किसी भी प्रकार की तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए। 

इंजीनियर साहब को अपने पत्नी के साथ शहर से दूर अपने रिश्तेदार की शादी में जाना था। रामाकांत ने इंजीनियर दम्पति को शादी के समारोह स्थल पर पहुंचा दिया। रामाकांत के व्यवहार से इंजीनियर दम्पति खुश थे। 

वे बोले- रामाकांत, हमलोग शादी उपरांत यहाँ से चलेगे, तब तक तुम भी यहाँ इंजॉय करो। 

शादी के कार्यक्रम समाप्त होने पर इंजीनियर दम्पति वापस अपने घर चलने के लिए कार में बैठ गए।

इंजीनियर साहब की पत्नी ने इंजीनियर साहब से कहा - सुनते हो जी ! मैं अपने डायमंड के झुमके को बदल कर हलके टॉप्स पहन लेती हूँ, फिर चलते है। 

इंजीनियर साहब की पत्नी ने अपने पर्स से सोने का टॉप्स निकाल कर पहन लिया और डायमंड के झुमके को पर्स में रखने के लिए उठाया तो वह फिसल कर नीचे गिर गया। इंजीनियर साहब की पत्नी ने डायमंड के झुमके को उठाने के लिए नीचे झुकी तो उनको एक ही कान का दिखा। 

दूसरा नहीं मिलने पर वो परेशान हो कर अपने पति से कहा - जरा देखिए ना , एक कान का नहीं मिल रहा है। 

इंजीनियर साहब ने झुंझला कर ढूंढते हुए कहा - तुम कोई काम ढंग से नहीं कर सकती।  

इंजीनियर साहब को भी जब झुमका नहीं मिला तो दोनों दम्पति कार से उतर कर ढूंढने लगे। डायमंड का झुमका बड़ा और कीमती था। रामाकांत ने भी बहुत कोशिश कि परंतु झुमका नहीं मिला। हैरान परेशान इंजीनियर दम्पति वापस घर चलने को तैयार हुए परंतु  इंजीनियर साहब की पत्नी पुरे रास्ते झुक-झुक कर झुमके को ढूंढ़ती रहीं। 

घर पहुँचने पर इंजीनियर साहब ने रामाकांत से कहा - देखो रामाकांत !अभी तो रात हो गई है और झुमका तो इसी कार में गिरा है। अभी तुम घर जाओ और आराम से कल झुमका ढूंढ़ कर लाना। मैं तुम्हें दस हज़ार रुपये बख्शीश में दूँगा। 

यह सुनकर रामाकांत का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा। जरूर साहब! मैं सुबह ही झुमका लेकर आपके पास आता हूँ। यह कहकर, वह चल दिया और सेठ हज़ारीलाल के गैराज में कार खड़ी कर सोने के लिए अपने खोली पहुँचा। घर पहुंचते ही पत्नी को सारी बात बता कर सोने लगा परंतु नींद तो कोसों दूर थी। वह सोचने लगा की कल बख्शीश का दस हज़ार मिल जाए तो सेठ की गुलामी छोड़ कर कारखाने की नौकरी करूँगा। सुबह उठ कर वह कार की तलाशी लेने लगा। लेकिन झुमका मिलने का कोई आस नज़र  नहीं आ रहा था।  अब वह मायूस होने लगा था और साथ में डर, कि कहीं झुमके के चक्कर में सेठ की भी नौकरी न चली जाए। अब उसने औज़ार लेकर कार की सभी सीटों को निकालने का फैसला लिया। सभी सीटों को निकाल कर अभी कार में झुमका ढूंढ़ने के लिए झुका ही था कि सेठ की गरजती हुई आवाज़ उसके कानों में पड़ी। अबे साले ! मेरी नई कार का सत्यानाश करने पर क्यों तुला है। 

रामाकांत ने हकलाते हुए बोला - सेठ जी! मैं तो इंजीनियर साहब की पत्नी का गुम हुआ झुमका ढूंढ़ रहा था।

सेठ ने कहा - चल अब सीटों को अपने जगह पर लगा दो। इंजीनियर साहब का फोन आया था कि झुमका उनके पत्नी के पर्स में ही था। 

यह सुनते ही रामाकांत का चेहरा निस्तेज हो गया। उसके नियति में सेठ के यहाँ शायद बंधुआ मजदूर बन कर ही जीना लिखा था।

चित्र http://naidunia.jagran.com/ से साभार।  

- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

No comments:

Post a Comment

मेरे पोस्ट के प्रति आपकी राय मेरे लिए अनमोल है, टिप्पणी अवश्य करें!- आपका राकेश श्रीवास्तव 'राही'