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Friday, January 19, 2018

तुम्हारा साथ


 

तुम्हारा साथ - 2

न मोहताज़ हो तुम किसी के,
न मोहताज़ हम हैं किसी के,
पर खाई थी हमने कसमें,
ये जीवन साथ बिताने का। 

जीने के तमाम साधन हैं,
ना तेरे यहाँ भी कमी है,
क्या ये ख़्वाहिश थी तुम्हारी 
बेदर्द दस्तूर जीने का। 

सर्द कोहरे में थे हम गुम,
एक गरम शॉल में थे हम-तुम,
क्या तुम्हें याद नहीं आता,
गुजरा हुआ वो पल प्यार का। 

सर्द मौसम और नर्म-धूप,
हाथों में हाथ और हम-तुम,
क्या तुम्हें याद है एक कप,   
औ' एक-एक घूँट वो चाय का। 

इक बार फिर से कोशिश करें,
यूँ नहीं हम घुट-घुट कर मरें,
एक दूजे के लिए ही जिए हम,
एक दूसरे के लिए ही जिए 
सहारा बनें एक दूजे का।    

- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
Hindi Poetry: मेरी स्वरचित कविता "तुम्हारा साथ - 2" का पाठ सुने :






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